यादों के झरोखों से " कभी भी नही कह पाऊंगी "
यादों के झरोखे के इस भाग में मैं अपने दिल की गहराई में छुपी वो बात कहने जा रही हूॅं जो इस साल यानी कि २०२२ के जून महीने में मैंने महसूस की थी।
लड़कियों की जिंदगी में अपने पापा की अहमियत क्या होती है ? यह बताने की नहीं बल्कि खुद ब खुद महसूस करने वाली बात होती है । लड़कियां तों अपने पापा की जान होती हैं तभी तों लोग मजाक में यह तक कहते हैं कि बेटियां अपने पापा की परी होती है । हर पिता का दिल बहुत बड़ा होता है । पिता तों वह होता हैं जो अपनी जरूरतों को भूलकर अपने बच्चों की गैरजरूरी फरमाइशें और जिद को भी पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते । पिता तों वह होता है जो खुद के एकलौते जूते फटे होने के बावजूद भी यही कहता हैं कि " अभी तो यह छः महीने चलेंगे " यह कहने वाला पिता अपने बच्चों के लिए एक जोड़ी जूते होने के बावजूद भी दूसरी जोड़ी लाकर अपने बच्चों को खुशी-खुशी देता है । पिता तों वह होता है जो कभी भी बच्चों को या परिवार के सदस्यों को किसी भी चीज के लिए तरसने नहीं देता । बच्चे बड़ी से बड़ी गलती भी क्यों न कर दें, पिता कुछ देर गुस्सा दिखाने के बाद अपने बच्चों को माफ कर देता हैं ।
दोस्तों! ऐसे पिता को उसकी संतान कैसे अलविदा कह दे? मैं क्या कोई भी बेटी या बेटा अपने पिता को कभी भी अलविदा पापा कहने की हिम्मत नहीं रखता । हम चाहते हैं कि हमारे पिता हमेशा हमारे साथ हमेशा रहें, यह जानते हुए भी कि ऐसा मुमकिन नही है। ऐसा नहीं है कि कोई भी नहीं जानता कि मृत्यु अटल है एक ना एक दिन तो इसे आनी ही हैं । सभी को मालूम है मृत्यु की सच्चाई लेकिन तब भी हम अपने पिता को अलविदा नहीं कह सकते । यह स्वार्थी मन चाहता हैं " पिता रूपी वृक्ष का साया हमारे सिर पर सदैव बना रहें । "
दोस्तों ! पिता का जब भी जिक्र आता है ये बातें मेरे दिल में अवश्य आती है। आज अपने दिल की बातें आपसे साझा करने जा रही है, जो बातें दिल में अक्सर आती है वें यह है 👇
" अलविदा पापा ! कभी भी तो
आपको मैं ना कह पाऊंगी ।।
आप हैं तो हमें लगता
धूप में भी छांव का एहसास ।।
आप का साथ हमें एहसास दिलाता
अंधेरे में भी प्रकाश है विद्यमान ।।
आज तक हर खतरें से आपने हमें बचाया
जीवन जीने की सीख से अवगत कराया ।।
आपके प्यार का मूल्य कभी ना चुका पाऊंगी
अलविदा पापा ! यह भी कभी ना कह पाऊंगी ।।
दोस्तों ! एक शाम बालकनी में अकेले बैठी थी तभी नजर मोहल्ले की बनी सड़क के उस तरफ चली गई जहां पर एक बच्ची एक आदमी का हाथ पकड़ कर जा रही थी। वह बच्ची बहुत खुश थी और खिलखिला कर बातें भी कर रही थी । मैं समझ गई कि वह यह जोड़ी एक पिता - बेटी की है। उस वक्त पापा से बात करने की इच्छा तों हो रही थी लेकिन उस वक्त मैंने पापा को काॅल नही की क्योंकि मेरी आवाज़ से उन्हें पता चल जाता कि मेरी ऑंखों में ऑंसू हैं । पापा मेरे हैं ही ऐसे । मैं खुश हूॅं , दुखी हूॅं , कुछ छुपा रही हूॅं ... मेरे मन की अभिव्यक्ति मेरी आवाज़ सुनकर ही जान लेते हैं । सब कहते हैं मेरा स्वभाव भी पापा की तरह ही है और सब सही भी कहते हैं । मैं पापा की तरह ही हूॅं । तुरंत ज्वाला की तरह फट पड़ना और कुछ पल बाद ही मोम की तरह पिघल जाना । यह पापा से ही मुझे मिला है । कोई - कोई होते हैं जो एक बात को लेकर कई दिनों तक घिसते रहते हैं । ऐसा स्वभाव मेरा नहीं । गुस्सा हुई भी तो कुछ देर बाद हॅंसना - बोलना चालू हो जाता है मेरा ।
खैर! अपनी बातें तो मैं करती ही रहूंगी साथ ही आप लोगों के समक्ष यादों के झरोखों से ऐसी ही यादें लेकर उपस्थित भी होती रहूंगी लेकिन तब, जब मुझे फुर्सत मिलेगी। फुर्सत मिली तों फिर से मिलने आऊंगी तब तक के लिए 👇
🙏🏻🙏🏻🙏🏻 " बाय " 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
" गुॅंजन कमल " 💗💞💓
Pranali shrivastava
10-Dec-2022 09:30 PM
शानदार
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Prbhat kumar
07-Dec-2022 11:22 AM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Anuradha sandley
29-Nov-2022 10:17 AM
Nice 👍🏼
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